कोरोना वायरस से कैंसे बचें पढ़े

उत्तराखंड हेड लाइंस के लिए रिपोर्ट


श्याम लाल चौधरी (गुरूजी) एम.ए. एल.एल.बी 
कोरोना वायरस एक महामारी के रूप में विश्व भर में अपने पैर पसार चुका है। पूरा विश्व इसकी चपेट में आ चुका है, जिसका संक्रमण व विषाणु इतना घातक है, कि आज पूरा विश्व थर-थर कांप रहा है। जितने भी उपाय व उपचार किए जा रहे हैं वह एक प्रयास मात्र हंै, निदान नही। बड़े-बड़े वैज्ञानिक, चिकित्सक इसके आगे हार चुके हैं।
 यह महामारी सर्वप्रथम चीन से शुरू हुई और इतनी तेजी से आधी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है, कि कोई समझ भी नही पाया। प्रश्न यह उठता है कि यह वायरस चीन से क्यों फैला घ् इसके सार में यह बात है कि चीन का आहार-विहार अत्यधिक मांसाहारी है। किसी भी जीव-जंतु तक को वह अपने भोजन में सम्मिलित कर लेते हैं। यहां तक की उसको जीवित या कच्चा ही खा जाते हैं। चीन के बने भोज्य पदार्थ यथा चैमिन आदि पहले से ही चर्चा में रहे हैं। फिर इस खाने पीने की चीजों का जादू लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है आज इस महामारी के भय से लोग मांसहार से दूर भागने लगे है।


                       
आज ही नहीं लगातार इस तरह की घटनाएं बीमारियां संक्रमण फैलता जा रहा है। कई बार मुर्गे, बकरे, ऊंट आदि जानवरों में और फिर उनके मांसाहार करने पर बड़े स्तर पर बीमारियों का संक्रमण हो हुआ है। लाखों करोड़ों की संख्या में इन जानवरों को मारकर जमीन में दफनाया गया है इससे सिद्ध होता है, कि मांसाहार बड़ी - बड़ी भयानक बीमारी और महामारी को जन्म देती है। वर्तमान में इसी कारण दुनिया मांसाहार से परहेज कर शाकाहार भोजन की ओर लौट रही हैं।
विश्व में भारत एक मात्र ऐसा देश है जहां शुरू से ही वैदिक काल से मांसाहार का वहिष्कार और शाकाहारी व आध्यात्मिक जीवन शैली को अपनाया गया है। इसलिए भारत में बड़ी-बड़ी महामारियों एवं भीषण बीमारियों का प्रकोप कम रहा है। आदिकाल से ही ऋषि-मुनियों ने प्रकृति की गोद में रहकर जंगलों में रहकर कंदमूल फल व औषधियों को ही अपने भोजन में शामिल किया गया है। तभी शतायु होने की बात भारतीय संस्कृति में पहले से ही कही गयी है। हमारे जीवन काल को चार वर्णो में वांटा गया है। बह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास 25 - 25 वर्षों में बांटकर 100 वर्ष का जीवनकाल माना गया है। जो कि प्रकृति के अनुरूप चलकर आहर विहार व जीवनशैली अपनाकर ही सम्भव रहा है इसी लिए उनकी जीवनशैली, आहार-विहार, मुख्य रूप से ऋषि-मुनियों के अनुसार जीवन शैली को अपनाकर ही इन भयंकर महामारियांे से बचा जा सकता है।
भारतीय संस्कृति के भोजन में प्रयुक्त होने वाली सभी वस्तुएं यथा मसाले आदि आयुर्वेदिक औषधियां हैं। जिनका जीवन और स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है, दैनिक उपयोग में धनिया, जीरा, अदरक, हल्दी, मिर्च, लौंग, काली मिर्च, सफेद मिर्च, हींग, लहसुन, जायफल, कलौंजी, तेजपत्ता प्याज आदि हमारे दैनिक भोजन का मुख्य अंग रहा है। इसी हीे वनस्पति जगत में सभी साग भाजी भी आयुर्वेद के अनुसार औषधीय गुणों से भरपूर है। वक्षों में जैसे पीपल, बरगद, आंवला, हरड,़ बहेड़ा नारियल, तुलसी, मंहुवा आदि वृक्ष औषधीय गुणों से भरपूर है। जो कि रोग प्रतिरोधक के रूप में उत्तम स्वास्थ्य देकर रोग प्रतिरोधक बनकर हमारे शरीर की रक्षा करती है। इसलिए इसका प्रयोग कर उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु प्राप्त की जा सकती है। हमारी संस्कृति में पीपल बरगद जैसे देव वृक्षों को जीवन से जोड़ा गया है। पीपल को तो बाह्मा- जगत का पालन करता कहा गया है इसीलिए विवाह, शादी, पूजन आदि के शुभ अवसरों मंे पहले पीपल के वृक्ष की पूजा होती है। बरगद का वृक्ष हजारों वर्ष तक रहता है, क्योंकि बरगद की विशेषता है कि वह जैसे-जैसे बढ़ता है अपने नए तनों को छोड़कर नये पौधें के रूप में विकसित करता चला जाता है। और रि-साईकल के सिद्धांत को जन्म देता है। इसका दूध बताशे में रखकर सेवन करना हमारे शरीर में अकल्पनीय रोग प्रतिरोध क्षमता को बढ़ाता है। इसका बीज, फल भी एक उत्तम औषधि है, इसी प्रकार पीपल के वृक्ष को ऑक्सीजन उत्पन्न करने की फैक्ट्री माना जाता है। सबसे अधिक व सबसे शुद्ध प्राणवायु देने वाला यह वृक्ष है। जिसका दूध व फल भी आयुर्वेदिक औषधियों का खजाना है। इसी प्रकार हरड़, बहेड़ व आवलां को अमृत कहा गया है। तुलसी का पौधा साक्षात देवता/देवी है जो जड,़ तना, पत्ती, फूल सहित असंख्य औषधीय गुणों की खान है ऐसा कहा जाता है, कि इसमें स्वर्ण की मात्रा पाई जाती है और इसी जीवन दायिनी भी कहा जाता है। तुलसी के आसपास बैक्टीरिया, बीमारी, कीटाणु, मच्छर, मक्खी आदि नहीं आते है। इसलिए घर-घर में इसकी पूजा होती है। तुलसी में प्रतिदिन जल चढ़ाना पूजा करना व्रत रखना इन सब बातों को जीवन से जोड़ा गया है। सभी वृक्ष प्राण वायु के साथ-साथ औषधीय गुणों से युक्त वायु व भोज्य पदार्थ आदि देतेे हैं। यहां तक कि इसका वर्णन किया जाना भी संभव नहीं हो पाता है।, इसलिए करोना जैसी भयंकर महामारी से बचने का अगर कोई रास्ता है तो केवल यही है। कि हम प्रकृति के अनुरूप आहार, विहार, विचार व जीवन शैली को अपनाएं। किसी भी बीमारी से लड़ने के लिए शरीर में सबसे पहले प्रबल रोग प्रतिरोधक क्षमता का होना बहुत आवश्यक है। और यह सभी हमारे शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता को अत्यधिक रूप से प्रबल बनाते है। जिससे हमारा शरीर बीमारियों से लड़कर स्वस्थ व निरोग रहता है, 
 इसके साथ साथ ऋषि-मुनियों ने पशु पक्षियों को भी हमारे जीवन से जोड़ा है जिनमें गाय को गौ माता का दर्जा दिया गया। गाय हमारे जीवन का पर्याय है। यहां तक कहा गया है। कि हमारी पृथ्वी गाय के सींग पर टिकी हुई है जो पूर्णता सत्य है। गायः- विशेषकर देसी गाय का दूध नवजात शिशु के लिए उसकी मां की दूध के समान ही गुणकारी होता है। गाय के दूध में एक ऐसी तत्व पाए जाते हैं जो शरीर को पोषित कर रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाते है। देसी गाय का शुद्ध घी जीवन दायिनी है, और औषधिय गुणों से युक्त है। प्राचीन समय में पूर्वजों द्वारा अधरंग जैसी भयंकर बीमारी में रोगी की नाक में गाय का शुद्ध घी तुरन्त डालने से अधरंग जैसी असाध्य बीमारी ठीक किया जाता था। गाय का गौ मूत्र पूर्ण रूप से कीटाणुनाशक एवं औषधीय गुणों से युक्त है। इससे कैंसर जैसी भीषण बीमारी का इलाज भी संम्भव है। गाय का गोबर भी बिषाणुनाशक व पर्यायवरण को शुद्ध कर संक्रामक रोंगो व विषाणु व कीटाणु के रोकथाम की उत्तम औषधि है। 
 हमारी संस्कृति में गाय के गोबर से घर व आंगन की लीपने की प्रथा थी, जो कि एक चिकित्सा विज्ञान का हिस्सा था। गाय के गोबर से आंगन को लीपने से भयंकर से भयंकर बीमारियां एवं कीटाणु नष्ट हो जाते है। वह तमाम रोग मुक्त व विषाणु मुक्त करता है। गाय के गोबर के कण्डे (सूखे गोबर) घर आंगन में जलाकर उस पर गाय के शुद्ध घी को डालने से पर्यावरण शुद्ध हो जाता है। गाय जो निःश्वास छोड़ती है। वह भी विषाणुओं को नष्ट करने वाला है। गाय के शरीर पर हाथ फेरने से एक ऐसी धारा प्रभाव (करंट) उत्पन्न होता है, जो हमारे शरीर में प्रवेश कर ऊर्जा व शक्ति प्रदान करने में महत्वपूर्ण है। बाबा राम देव जैसे विश्व योग गुरु द्वारा इन औषधियांे का वर्णन व उपयोग बड़े स्तर पर गया है। पूर्वजों के अनुसार चंद्र व सूर्य ग्रहण के समय गाय के गोबर से घर के चारोें कोनों से एक रेखा खीच देते थे जिससे ग्रहण के समय उत्पन्न विकिरण का प्रभाव निस्प्रभावी हो जाता है। यहां तक कि गर्भावस्था में महिलाओं व पशुओं के लिए भी यह सुरक्षाकवच के रूप में काम करता है। 
कृषि और अन्न उत्पादन जो पुरानी जैविक खेती को छोड़कर आज बढ़ती आबाधी के भरण पोषण की पूर्ति एवं अधिक लाभ कमाने के लिए हाइब्रिड (निरवंश) बीजों व फसलों को उगाया जाता है। जो कि हमारे शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता को कम कर हमारे स्वस्थ्या से खिलवाड़ कर रहा है। जो निरवंश बीज अपनी अगली पीढ़ी को जन्म नही दे सकता उसका हमारे शरीर पर भी वही प्रभाव पड़ेगा। हम अपनी जीवन शैली व दिनचर्या में मूलभूत परिवर्तन कर रक्षात्मक उपायों को अपनाकर ही इन विभीषिकाओं से बच सकते है। 
आज की कोरोना नामक इस महामारी से बचाव के लिए अभी तक कोई भी प्रमाणित प्रभावशाली दवा नही बन सकी है। जिससे पूरा विश्व चिन्तित है, और इसकी रोकथाम के लिए एक मात्र उपाय सावधानी बर्तना व शरीर की रोग प्रतिरोध क्षमता को विकसित करना व बनाये रखना ही है। माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी द्वारा भी अपने देश के नाम संदेश में इन्ही बातों के लिए जोर देकर जनता से सर्तकता बरतने व इस महामारी का दृढता पूर्वक मुकाबला करने की अपील की गयी है। हम सब इसका पूर्ण रूप से पालन कर इस असाध्य बीमारी को हराने में अपनी अहम भूमिका प्रदान करें।



श्याम लाल चौधरी (गुरूजी) एम.ए. एल.एल.बी 


पित्थूवाला देहरादून